सामान्य से श्लोक का गूढ़तम सार - त्वमेव माता च पिता त्वमेव....
सामान्य से श्लोक का गूढ़तम सार त्वमेव माता च पिता त्वमेव , त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ! त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव , त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं !! आसन सा मतलब है … हे भगवान...! माता तुम्हीं हो … पिता तुम्हीं हो... बंधु तुम्हीं हो... सखा तुम्हीं हो... विद्या तुम्हीं हो... तुम्हीं द्रव्य... सब कुछ तुम्हीं हो... मेरे देवता भी तुम्ही हो. लगभग सभी ने बचपन से पढ़ी है. छोटी और एकदम सरल है... इसलिए सिखा दी गई है. बस आप सिर्फ... त्वमेव माता इतना भर बोल दो... आगे वाला पोपट की तरह पूरा श्लोक सुना देता है. मैंने अपने काफी मित्रों से पूछा की.. द्रविणं का क्या अर्थ है... ? संयोग देखिए... मेरा एक भी मित्र बता नहीं पाया. द्रविणं के मतलब पर चकराते लगते हैं... और द्रविणं का मतलब जानकर चकित हो जाते है...! द्रविणं जिसका मतलब है... द्रव्य... धन - संपत्ति द्रव्य जो तरल है... निरंतर प्रवाहमान है... मतलब वह... जो कभी भी स्थिर नहीं रहता. आखिर लक्ष्मी भी कहीं टिकती है क्या.... ? जितनी यह सुंदर प्रार्थना है... उतनी ही प्रेरणादायक इस प्रार्थना का वरीयता क्रम है... प्रार्थना में सबसे पह